रुके से हम रुके से तुम और ज़माना बढ़ गया,
ये तेरा दिल मेरे दिल में जाने कब उतर गया ।
अभी तो प्यार की शुरुआत हो रही है सनम,
अभी से ही दिल मेरा तेरा ठिकाना बन गया ।
तुम मिले तो यूं लगा मिल गया मेरा खुदा,
नज़रे मिली तुमसे मेरी और फ़साना बन आया ।
रुके से हम रुके से तुम और ज़माना बढ़ गया,
ये तेरा दिल मेरे दिल में जाने कब उतर गया ।
अभी तो प्यार की शुरुआत हो रही है सनम,
अभी से ही दिल मेरा तेरा ठिकाना बन गया ।
तुम मिले तो यूं लगा मिल गया मेरा खुदा,
नज़रे मिली तुमसे मेरी और फ़साना बन आया ।
ज़रा-सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा;
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा;
न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं;
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा;
सफ़ीना हो के हो पत्थर, हैं हम अंज़ाम से वाक़िफ़;
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा;
समन्दर के सफर में किस्मतें पहलू बदलती हैं;
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा;
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको;
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा।
हम तो हर बार मोहब्बत से सदा देते हैं,
आप सुनते हैं और सुनके भुला देते हैं,
ऐसे चुभते हैं तेरी याद के खंजर मुझको,
भूल जाऊं जो कभी याद दिला देते हैं,
ज़ख्म खाते हैं तेरी शोख निगाहों से बहुत,
खूबसूरत से कई ख्वाब सजा लेते हैं,
तोड़ देते हैं हर एक मोड़ पे दिल मेरा,
आप क्या खूब वफाओं का सिला देते हैं,
दोस्ती को कोई उन्वान तो देना होगा,
रंग कुछ इस पे मोहब्बत का चढा देते हैं,
तल्खी-ए-रंज-ए-मोहब्बत से परीशां होकर,
मेरे आंसू तुझे हंसने की दुआ देते हैं,
हाथ आता नही कुछ भी तो अंधेरों के सिवा,
क्यूँ सरे शाम यूँ ही दिल को जला लेते हैं,
हम तो हर बार मोहब्बत का गुमा करते हैं,
वो हर एक बार मोहब्बत से दगा देते हैं,
दम भर को ठहरना मेरी फितरत न समझना,
हम जो चलते हैं तो तूफ़ान उठा देते हैं,
आपको अपनी मोहब्बत भी नही रास आती,
हम तो नफरत को भी आंखों से लगा लेते हैं ।
अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।
ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।
बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।
मुझ में ख़ुशबू बसी उसी की है,
जैसे ये ज़िंदगी उसी की है ।
वो कहीं आस-पास है मौजूद,
हू-ब-हू ये हँसी उसी की है।
ख़ुद में अपना दुखा रहा हूँ दिल,
इस में लेकिन ख़ुशी उसी की है।
यानी कोई कमी नहीं मुझ में,
यानी मुझ में कमी उसी की है।
क्या मेरे ख़्वाब भी नहीं मेरे,
क्या मेरी नींद भी उसी की है ?
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला,
साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला ।
मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक,
दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला ।
बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं,
वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला ।
उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर,
मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला ।
एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए,
ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला ।
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे,
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे ।
ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना,
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे ।
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी,
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे ।
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको,
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे मगर जाने दे ।